हास्य-व्यंग

मज़ा ही कुछ और है



सास बहू एण्ड सेंसेक्श



सास बहू को देख कर मुझे,
दो सेम सेक्स की याद आती है,
एक सास दूजी बहू कहलाती है,
पाँच दिन की जगह सात दिन,
घर का माहौल बतलाती हैं!

सेंसेक्श की तरह दोनो का रिश्ता नाज़ुक है,
हर एक दाव पे पारा चढ़ता है,
कभी सास तो कभी बहू आगे बढ़ती है,
सुबह सास की तो रात बहू की होती है!



बहू बुल है और घर के खर्च को बढ़ाती है,
सास वियर है और घर के खर्च को घटाती है,
ननद के आने पर उल्टी गंगा बहती है,
बहू वियर तो सास बुल बन जाती है!

रिसेशन का बराबर असर पड़ता है,
घर का सेंसेक्श औंधे मुह गिरता है,
दोनों के कमरे मे मातम दिखता है,
शॉपिंग के लिए जाना भी कम दिखता है,
झगड़े की क्या बात है थोड़े से ही काम चलता है!


एक दिन फिर माहौल बदलता है,
पहली तारीख को फिर से सेंसेक्श चढ़ता है,
सास बहू का झगड़ा बराबर चलता रहता है!