जीवन के सफ़र में कई अनुभव होते हैं..इन अनुभवों को शब्दों में पिरोकर आपके सामने पेश कर रहा हूं..यह सफ़र मेरा ही नही आपका भी है..ये बातें मेरी ही नही आपकी भी है
Friday, December 31, 2010
आप सभी को नववर्ष की शुभकामनाएं..नववर्ष आपका मंगलमय हो और आपके जीवन मे नयी खुशियों का प्रवेश हो..इस दुआ के साथ नववर्ष मे आपका स्वागत करता हूँ और आपके सामने ये कविता पेश करता हूँ.
आ रहा नया वर्ष
आ रहा है फिर एक नया वर्ष,
छा रहा है हर तरफ एक नया हर्ष,
जग रही लोगो के मन में एक नई आश,
होगा बेहतर यह वर्ष बस यही है प्रयास!
मन में एक अजीब कसग जग रही है,
कुछ नया होने की आश जग रही है,
सोचता हूँ क्या नया होगा अगले वर्ष,
क्या नया होगा जो नही हुआ बीते वर्ष!
एक पल रुक कर क्यों नही हिसाब करें,
जो बीत गया उस वर्ष की कुछ बात करें,
हमने क्या खोया इस बीते वर्ष में,
हमने क्या पाया इस गुज़रे वर्ष में!
कुछ लोगो ने पाया बहुत कुछ पिछले वर्ष,
कुछ लोगो ने खोया हर कुछ बीते वर्ष,
ऐसा ही होता है और ऐसा ही होगा,
फिर नये वर्ष में कुछ नया होने का क्यों आभास करें!
समय का पहिया ऐसे ही घूमता है,
हम उठते और गिरते रहते हैं,
जीवन नैया मे हिचकोले खाते हैं,
गिरते संभाले आगे बढ़ते जाते हैं!
सम्पन लोग जश्न मे डूबते हैं,
ग़रीब भूख की आग मे तड़पते हैं,
नया पुराना सब उनके लिए बेमानी,
कुछ नया होगा यह बस एक कहानी!
छा रहा है हर तरफ एक नया हर्ष,
जग रही लोगो के मन में एक नई आश,
होगा बेहतर यह वर्ष बस यही है प्रयास!
मन में एक अजीब कसग जग रही है,
कुछ नया होने की आश जग रही है,
सोचता हूँ क्या नया होगा अगले वर्ष,
क्या नया होगा जो नही हुआ बीते वर्ष!
एक पल रुक कर क्यों नही हिसाब करें,
जो बीत गया उस वर्ष की कुछ बात करें,
हमने क्या खोया इस बीते वर्ष में,
हमने क्या पाया इस गुज़रे वर्ष में!
कुछ लोगो ने पाया बहुत कुछ पिछले वर्ष,
कुछ लोगो ने खोया हर कुछ बीते वर्ष,
ऐसा ही होता है और ऐसा ही होगा,
फिर नये वर्ष में कुछ नया होने का क्यों आभास करें!
समय का पहिया ऐसे ही घूमता है,
हम उठते और गिरते रहते हैं,
जीवन नैया मे हिचकोले खाते हैं,
गिरते संभाले आगे बढ़ते जाते हैं!
सम्पन लोग जश्न मे डूबते हैं,
ग़रीब भूख की आग मे तड़पते हैं,
नया पुराना सब उनके लिए बेमानी,
कुछ नया होगा यह बस एक कहानी!
हर तरफ एक लूट मची है,
सब कुछ पाने की होड़ लगी है,
हर कोई दूसरों को मसल आगे बढ़ने मे लगा है,
मन की शांति को तो कब का भंग कर चुका है!
प्रकृति भी त्राहिमाम कर रही है,
आम जनता सिसक रही है,
प्रलय की ओर हम बढ़ रहे हैं,
फिर भी बदले का यह वक़्त यह उम्मीद कर रहे हैं!
थके हारे चेहरे एक सवाल पूछ रहे हैं,
कब आएगा वो वक़्त जिसकी राह तक रहे हैं,
मैं कहता उन्हे की वो वक़्त बस नज़दीक है,
हम अपने सपनो के समीप हैं,
आज माना की नहीं कोई विकल्प है,
पर बदल देंगे दुनिया यह संकल्प है!
Subscribe to:
Posts (Atom)