कविताएं

किसे अब ये हाल बतायें


मँहगाई की ही तो मार है,
जेब में बस रुपये चार है,
सॅलरी में अब कहाँ उछाल है,
जीवन जीना तो लगता अब जंजाल है!

ग़रीबी रेखा अब ताक झाक रही है,
किसे कैसे मापे ये सवाल पूछ रही है,
खाने में अब प्याज़ कहाँ है,
और नन्ही बिटिया भी अब होने को जवां है!

किस तरह हम अब अपना हाल बतायें,
कैसे ज़िम्मेदारीओं से मुँह चुरायें,
लगता है की प्याज़ की जगह खुद ही पीस जायें,
कब तक रसोई की ज़िम्मेदारियों पर हीं आँसू बहायें!

खो रहे हैं हर सपने को,
देख रहे हैं मायूस हर अपने को,
थोड़ी सॅलरी का क्या अचार बनायें,
किस सरकार को जा कर ये हाल बतायें!

बोलते हैं मंहगाई तो बढ़ती ही है,
प्राइस तो धीरे धीरे चढ़ता ही है,
तुम अब इसे नहीं बहाना बनाना,
पाँच साल में एक बार हमें जाकर वोट दे आना!

एक तरफ मारते हैं पेट पर लात,
दूसरी तरफ करते हैं विकास की बात,
हर तरक्की की ग़रीब ही क्यों कीमत चुकाये,
क्यों नहीं हम अपना कड़ा विरोध जताएँ!

पर सुनता है कौन इन बातों को,
किसे सुनना है इन ज़ज़्बातों को,
हम तो बस ऐसे ही बकवास करते हैं,
कुछ हो जाये इसलिए आपसे संवाद करते हैं!  



दुनिया के नियमों पर बस हंसते हैं

देखा है तड़पते दोस्तों को,
दुनिया की नाकामी को अपने कंधे पर ढोते,
थक चुके हैं समाज के खोखले नियमों को मानते,
इसलिए बड़ों का विरोध करना ही सही जानते!

उनका मन भी कभी निश्छल था,
पर हर कदम पर लोगों ने छला था,
इसलिए कहते हैं की हम क्यों समाज के नियमों को मानें,
आप ने बनाया है अब आप ही जानें!
फिर भी ग़रीबों की मदद वो हमेशा करते हैं,
डोनेशन देने में पीछे नहीं हटते हैं,
लोगों के लिए कुछ करना चाहते हैं,
पर कैसे करें सही रास्ते को नही पहचानते हैं!

लक्ष्य को अगर वो जान लें,
सही रास्ते को अगर पहचान लें,
कर जाएँगे कुछ ऐसा काम नया,
समझेंगे उसे कर हमने जीवन को पूरी तरह जिया!

पर नहीं मिलता सही जवाब उन्हें,
दिखते नहीं चेहरे दें सम्मान जिन्हें,
इसलिए अपने रास्ते चलते हैं,
और दुनिया के नियमों पर बस हंसते हैं!





मैं तो पथिक हूँ



आज फिर लिख रहा हूँ,
दिल के दबे ज़ज्बात रख रहा हूँ,
भूल गया था मैं तो पथिक हूँ,
इसलिए सफ़र की कहानी कह रहा हूँ!

बढ़ गया मैं आगे जीवन के सफ़र में,
छोड़ दिया पीछे उस नुक्कड़ को,
जहाँ कभी दिन के अधिकांश वक़्त मैं बिताता था,
जहाँ कभी हर दिन मैं बराबर होकर आता था!


आज फिर यादों के सफ़र में मैं जा रहा हूँ,
उस नुक्कड़ पे फिर से होकर आ रहा हूँ,
मज़मा अब भी पहले जैसा ही है वहाँ पर,
पर फिर भी वो सब कुछ अपना नहीं है उस जगह पर!

सोचता हूँ क्या बदला कुछ दिनों में,
 कौन सी चमक फीकी हुई इन दिनों में,
टटोला यादों की गठरी को,
पाया छूटे उस पुराने साथी को!


उस नुक्कड़ पे वो साथी भी तो हमेशा संग था,
उसकी मीठी-मीठी बातों में मैं हमेशा मगन था,
चला गया वो एक नये सफ़र पर,
छोड़ गया मुझे जीवन के एक मोड़ पर!

गिरा, संभला, आगे मैं बढ़ता गया,
धीरे से अपनी कब्र को लाँघ गया,
आज निकल आया हूँ इतना आगे इस रह पर,
नामो निशान नही है उस साथी का इस जगह पर!


नये नुक्कड़ पे अब मैं वक़्त बिताता हूँ,
अपने नये साथियों से गप्पे लड़ाता हूँ,
आज उस साथी की याद भी नही आती,
जिसके संग हर एक पल मैं बीताता था!

जीवन के सफ़र मे कई साथी किसी नुक्कड़ पे मिल जाते हैं,
उनके संग हम हसीन लम्हा बीताते हैं,
एक दिन एक बात पर वो रूठ जाते हैं,
जीवन मे कभी वापस फिर नहीं आते हैं,
हमने तो आज याद भी कर लिया उन्हें,
उनकी यादों में भी हम नहीं आते हैं!